वो जाते हैं तेल मांगने…बीती रात का दीपक बटोरने…ये उनकी मस्ती होती है, एक-दूसरे को चुनौती देते हैं कि देखें कौन कितने दीपक बटोरेगा? ये किसी विचार मंच से उपजे वक्तव्य नहीं थे . ये तो बस्ती के उन बच्चों की बातों और उलाहनों के आदान-प्रदान से पता चला, जिनके साथ पीयूष और नर्बदा पढ़ाने का काम करते थे. बस इसी विचार के साथ घोड़ेवाले बाबा बस्ती के बच्चों के साथ दीपक रंगों, सजाओ और घर ले जाओ का काम किया. जिसे जो रंग पसंद आया वो किया. अच्छा नहीं लगा तो उसी पर दुबारा कर दिया. तूने लाल पोता तो मैं पीला लगाऊंगा ….देख उसका कितना अच्छा लग रहा है… मैं तो अब घर जाकर भी रंग करुँगी….तेरा सूख गया…..चल अब चमक लगा लें….इन्हीं सब से पूरी जगह गूँज रही थी. उनमें से अधिकतर ने ब्रश शायद पहली बार पकड़ा था. रंग सबको उजास भर देते हैं. …तो ऐसी रही हमारी रंग और रोशनी कार्यशाला जिसमें लगभग 160 बच्चों ने भाग लिया. दो दिन की इस कार्यशाला में पहले दिन बस्ती के बच्चे जुड़े थे. और दूसरे दिन सामाजिक संस्थाओं से जुड़े बच्चों ने भाग लिया था. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो गतिविधि के . आप भी आनंद लें. शुभ दीपावली.