गत वर्ष बालिका गृह की बालिकाओं के साथ हमने प्रायोगिक परियोजना ‘self अर्थात सेल्फ एक्सप्लोरिंग, लीडिंग एंड फोस्टरिंग परियोजना’ के तहत मुख्यता साक्षरता और शैक्षिक संवर्धन प्रयास किये थे. जिसमे बालिकाओं के शैक्षिक स्तर अनुसार भाषा सम्बन्धी लेखन और पढ़ने की दक्षता संवर्धन पर कार्य किया गया था. (देखें 3 जुलाई की पोस्ट: Continuous engagement with girls of Balika Grah). अनेक नवाचारी विधाओं का समावेश करते हुए चार माह की इस प्रायोगिक परियोजना के परिणाम स्वरुप बालिकाओं ने अपनी प्रतिभा दिखाते हुए अपनी छूटी पढाई को दुबारा शुरू करने का आग्रह किया. इस आग्रह के पहले प्रयास में 14 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं को स्कूल से जोड़ा गया और बड़ी बालिकाओं को स्टेट ओपन स्कूल प्रणाली के तहत दसवीं कक्षा हेतु आवेदन करा दिया गया है. ये वे बालिकाएं थी जो पहले स्कूल जाती थीं परन्तु जीवन संघर्षों के चलते पढाई छूट गयी. मौका मिला तो पढने के अंकुर पुनः फूटे, सचेतन साथियों ने पहचाना और पल्लवित करने में अपनी भूमिका को समझा. नयी किताबों के साथ नए रिश्ते जुड़े, नए मेंटर सामने आये….अब तो बालिका गृह में शिक्षक का बंदोबस्त और अप्रैल-मई में परीक्षा की तैयारी साथियों के सामने नए लक्ष्य आ गए हैं. इसी कड़ी में सचेतन साथियों अरविन्द, राजेश, लीना, सुनीता, राजीव, भारती, विमलेश, मंजू और मनीष ने बालिका गृह में बालिकाओं के साथ संवाद किया, उन्हें समझने की कोशिश की, वे कहाँ किस तरह से सहयोग कर सकते हैं – जानने का प्रयास किया.;..इस संवाद कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें आपके साथ साझा कर रहे हैं….आपके सुझाव और सहयोग की अपेक्षा के साथ….
हम अपने सभी उन साथियों/जानकारों/परिवार जनों को धन्यवाद देते हैं जिनके दान सहयोग से हम बालिकाओं के साथ शैक्षिक कार्यक्रम को इस स्तर तक ला सके और आगे भी बढ़ा सकेंगें.
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