सीना पिरोना है धंधा पुराना,
दे दो हमें दुनिया गर रफू है कराना….
जीवन के उतार चढ़ाव में कई बार लोग हमारा साथ छोड़ देते हैं. कुछ साथ रहता है तो वो होता है व्यक्ति का ज्ञान, अनुभव और हुनर. इन्हें कोई नहीं छीन सकता. ये पूँजी समान होते हैं. यदि इन्हें तराशा जाता रहे तो मुश्किलों में राहें आसान हो जाती हैं और परिस्थितियों का सामना करने का हौसला भी बना रहता है. कुछ ऐसे ही इरादों के साथ हमने राजकीय बालिका गृह, नान्ता की बालिकाओं के साथ उनके सिलाई के हुनर को नवीन आयाम देने का प्रयास किया.
लगभग तीस दिन के सिलाई प्रशिक्षण कार्यक्रम में 12 बालिकाओं के साथ काम शुरू किया गया. ये प्रशिक्षण सिर्फ सिलाई मशीन चलाना सिखाने का नहीं था या नए कपड़े से कुछ बनाना ही नहीं था, बल्कि उस नज़रिए को भी विकसित करना था कि कैसे पुराने कपड़े से कैसे क्या उपयोगी चीज़ बनायीं जा सकती है. ग्रामीण परिवेश की इन बालिकाओं में से कुछ ने जस का तस सीखा, तो कुछ ने अपना नवाचार दिखाया. कुछ हम सोच कर गए थे कुछ कमाल उन्होंने कर दिखाया. किसी ने एप्रन बनाये तो किसी ने पोटली पर्स. मोबाइल कवर, शगुन के पाउच, पेन ड्राइव केस, बटुए…….और भी बहुत कुछ.
कतरनें, लेस, फुंदने, डोरियाँ, गोटा, मोती, रंगीन धागे, कैंची की चाल, सिलाई मशीन की रफ़्तार, सुई का टूटना, शटल की मरम्मत, पुर्जों में तेल…. और इन सबके बीच तल्लीनता से काम करती लड़कियां…मानों अपने सपनों को सिल रहीं थीं. और ये सब सफल करने में सहयोग के लिए बालिका गृह अधीक्षक सुश्री अंशुल जी और उनके स्टाफ़ का सचेतन टीम हार्दिक आभार व्यक्त करती है जिन्होंने बालिकाओं को प्रशिक्षण हेतु अनुमति और संस्थान में मौजूद सिलाई मशीनें उपलब्ध करायीं. सचेतन साथी सुनीता जैन का सबसे बड़ा सहयोग रहा जिनके अनुभव, हुनर और निरंतर उपलब्धता ने परियोजना की गुणवत्ता को बढ़ा दिया. धन्यवाद सुनीता. साथ ही सचेतन के उन शुभचिंतकों का भी हम आभार व्यक्त करते हैं जिन्होनें नए-पुराने कपड़े/ साड़ियाँ/ चादरें इत्यादि अभ्यास हेतु उपलब्ध करायीं. आइये देखें और सराहें बालिकाओं द्वारा बनाये उत्पादों को…